शुक्रवार, 3 सितंबर 2010

जसिया की आखें

वह असामान्य रूप से बड़ी-बड़ी आंखे फिर मेरे सामने थी। उन आंखों का सामना कर पाना बहुत मुश्किल है। यह आंखे मेरी बार-बार पीछा करती हैं। आज यह आंखे आज अखबार के उस पन्ने से झांक रही है जिसमें भुखमरी से एक मुसहर की मौत की खबर छपी हैै। भुखमरी, गरीबी, लाचारी से हर मौत पर यही आंखे सामने आती हैं। तीन वर्ष पहले एक वरिष्ठ पत्रकार ने कुशीनगर जिले में भूख से मौतों के बारे में रिपोर्ट लिखने के लिए कुछ मुसहर गांवों में जाने की इच्छा जाहिर की थी और वह चाहते थे कि मै भी उनके साथ चलूं। वर्ष 2004 में भुखमरी से नगीना मुसहर की मौत के बाद मै लगातार कुशीनगर जिले के मुसहर गांवों का दौरा कर रहा था और उनके बारे में लिख रहा था। मुसहरों की गरीबी, बेबसी और उनकी बस्तियों में मौत के तांडव की कहानियां मीडिया की सुर्खी बनी हुई थी। हम लोग उन मुसहर गांवों में गए जहां हाल मंे भूख से मौत हुई थी। उनके परिजनों और गांव वालों से बातचीत की। बातचीत से एक बात साफ उभर कर सामने आ रही थी कि मुसहरों के पास खेती की जमीन नहीं है, वे कर्ज में डूबे हैं, खेती में मशीनों के बढ़ते प्रयोग के कारण उन्हें अब कम काम मिलता है और खेत में मजदूरी करने पर महिलाओं को 20 रूपए और पुरूषों को 40 रूपए से अधिक नहीं मिलता। मुसहर नौजवान गांव छोड़ कर भाग रहे हैं। 40-45 वर्ष के लोग भी बूढ़े दिखते हैं। हर घर में कोई न कोई बीमार है। तपेदिक का भयानक प्रकोप है। कुपोषित बच्चों को देखने पर दिमाग में सोमालिया के बारे में पढी-देखी खबरें और तस्वीरें घूमने लगती है। बच्चे सुबह से उठ कर तालाबों के किनारें घोंघे ढूंढते है या गना, गेंठी चूुस कर अपनी भूख मिटाते हैं। धान की कटाई हुए खेतों में महिलाएं व पुरूष चूहे के बिल ढूंढते हैं और फिर उसे खोद कर चूहे द्वारा छिपाए गए धान को बाहर निकाल लेते हैें। यह अनाज उनके जीवन के लिए कुछ दिन का सहारा बनता है। मुसहर बस्तियां गांव के दक्खिन की तरफ हैं और जब चलते-चलते आापके पांव से खडंजा या कच्ची सड़क गायब हो जाए तो समझिए कि कोई मुसहर बस्ती आपके सामने आने वाली है। ऐसे ही एक गांव में जब हम पहुंचे तो लोगों ने बताया कि जसिया के घर उसके बेटे की मौत हुई है। हम उसकी घर की तरफ गए तो जसिया और उसकी बेटी घर के बाहर बैठी मिलीं। बेटे की मौत को चार-पांच दिए हुए थे। बातचीत के क्रम में मैने पूछा कि घर में इसके पहले कोई और मौत हुई है। कुछ देर की चुप्पी के बाद उसके मुंह से निकला .....मरद की। ........कोई और मौत ...............जसिया नहीं बोल रही है। उसकी बड़ी-बड़ी आंखे हमकों घेर लेती है। गांव के एक लड़का बोल पड़ता है इनके एक और बेटे की मौत हो चुकी है। जसिया के मुंह से बोल फूटते हैं हां एक साल पहले। एक साल में देा बेटे और पति की मौत। बेटी जिंदा है लेकिन ससुराल वालों ने उसे खदेड़ दिया है। कहते हैं कि उसके घर में इतनी मौत क्यों हो रही है ? जरूर कोई जादू-टोना या भूत-प्रेत की बात है। वह रहेगी तो उनका साया यहां भी पड़ेगा। पैसा नहीें था इसलिए बेटे और मर्द का क्रिया-करम भी नहीं हो सका था। दूसरे बेटे का क्रिया-करम हो जाएगा क्योंकि अब इन बस्तियों में नेता आने लगे हैं। बाबा कल आए थे और कुछ रूपए देते हुए कार्यकर्ताओं को निर्देश दे गए हैं कि ठीक से क्रिया-करम हो जाए। ठीक से क्रिया-करम नहीं होना धर्म के लिए जरूरी है।

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